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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
आचार्यश्री का प्रतिदिन व्याख्यान होता रहा देवगुरु धर्म का स्वरूप तथा मुनि धर्म - गृहस्थ धर्म और साधारण आचार से उन नूतन श्रावकों में ऐसे तो संस्कार डाल दिये कि
व्यवहार दिन व दिन उनकी जैन धर्मपर श्रद्धा - रूचि बढती गई । कालान्तर आचार्यश्रीने वहां से विहार करने का विचार किया इस पर महाराज रूद्राने अर्ज करी कि भगवान् ! यहां के लोग अभी नए है मिध्यात्वी लोगों का चिरकाल से परिचय है न जाने आपके पधार जाने पर इन लोगों का फिर भी जोर बढ जावें वास्ते मेरी अर्ज तो यह है कि आप चतुर्मास भी यहां ही करें | इस पर आचायश्रीने फरमाया कि राजन ! मुनि तो हमेशां घुमते ही रहते हैं जैन धर्म की नींव मजबूत बनाने को खास दो बातों की आवश्यक्ता है ? ( १ ) जैन मन्दिरों का निर्माण होना ( २ ) जैविद्यालय स्थापन कर जैनतत्व ज्ञान का प्रचार करना । ये दोनों कार्य आप लोगों के अधिकार के है । राजाने अर्ज करी कि हम इन दोनों कार्यो को शीघ्रता से प्रारंभ करवा देंगे पर साथ में आपश्री के उपदेश की भी सम्पूर्ण जरूरत है। सूरिजी महाराजने इस बात को स्वीकार कर कितनेक मुनियों को शिवनगर में रख आपने आसपास में बिहार किया जहां २ चाप पधारे वहां २ जैनधर्म का खूब प्रचार किया जहां नए जैन बनाए वहां जैन मन्दिर और विद्यालय स्थापन करवा दीये और कहीं २ पर तो आप अपने साधुओं को वहां ठहरने की आशा भी दे दी ।
इधर महाराज रूद्राटने बड़ा भारी आलिशान जैन मन्दिर