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(४६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. विहार करवाने की दलाली सञ्चायिकाने ही की थी। सचायिका देवीने सूरिजी से कहा " हे प्रभो ! यह मातूलादेवी शिवनगर की अधिष्टात्री है और प्रतिवर्ष में हजारों लाखों जीवों का बलीदान ले रही है आप इसको उपदेश दें।" यह कहते ही मातूला देवीने हाथ जोड़ के अर्ज कर दी कि भगवान् ! आप उपदेश की तकलीफ न उठावें आपका प्रभाव मेरे अन्तःकरण में पढ़ चूका है। मैं आपनी के सन्मुख प्रतिज्ञा करती हूं कि भाज से मेरे नामपर किसी प्रकार की जीव हिंसा न होगी, इसपर सूरिजी महाराजने संतुष्ट हो देवी को वासक्षेप देकर जैन धर्मोपासिका बनाई । इसका प्रभाव राजअन्तेउर और महिला समाज पर भी बहुत अच्छा पडा । इधर राजा प्रजा बड़े ही आतुर हो रहे थे; सूरिजी महाराजने उनको पूर्व संचित मिथ्यात्व की आलोचना करवा के ऋद्धि सिद्धि संयुक्त महा मंत्र पूर्वक वासक्षेप के विधि विधान से उन सबको जैन धर्म की शिक्षा देकर जैनी बनाए, और संक्षेप से नित्य कर्म में आनेवाले नियम बतलाए, खानपान आचार की शुद्धी करवा दी, मांस मदिरा शिकार वैश्यागमन चोरी जूवा और परस्त्री गमनादि दुर्व्यसनों का सर्वथा त्याग करवा दिया और देवगुरु धर्म और शास्त्र का थोडे से में स्वरूप समझा दिया इत्यादि । देवी सचायिकाने नूतन जैन जनता को उत्साह वर्द्धक धन्यवाद दिया तत्पश्चात् सब लोग सूरीजी महाराज को वंदन नमस्कार कर जैन धर्म की जयध्वनी के साथ विसर्जन हुए।
आचार्यश्री और सचायिका देवी आपस में वार्तालाप कर