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सूरिजी और देवी सचायिका.
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का धर्म है जैन धर्म सब धर्मों से प्राचिन और पवित्र धर्म है सदाचार और नीति पथ बतलाने में यह धर्म अद्वितीय है और श्रात्म कल्याण करने में तो इसकी बराबरी करनेवाला संसारभर में कोइ भी धर्म नहीं है फिर भी अधिक हर्ष इस बात का है कि श्राप जैसे महान तपस्वी गुरुवर्य अनेक प्रकार के संकट सहन करते हुए हमारे सद्भाग्योदय से यहां पधारकर सद्बोध दिया जिसके जरिए हम लोगों को सत्यासत्य हिताहित कृत्याकृत्य भक्ष्याभक्ष धर्माधर्म का ज्ञान हुआ इतना ही नहीं पर हम ब खूबी समझ गए हैं कि आप जैसे परम योगीश्वरों के चरणकमलों की रज भी हमारे जैसे अधर्मियों का कल्याण करने में समर्थ है हम सब लोग आप श्रीमानों के उपदेशानुसार जैन धर्म स्वीकार करने को तैयार हैं अर्थात् आप हमारे धर्मगुरु हैं; हम और हमारी भावी सन्तान आपके शिष्य उपासक हैं इस अभिरूची के कारण जैसे आचार्यश्री का सदुपदेश था वैसे ही उन पाखण्डियों का दुराचार भी था कारण दुनिया पहिले से ही उन दुशीलों से घृणा कर शान्तिमय धर्म की प्रतिक्षा कर रही थी वह शान्ति श्राज सूरीश्वरजी के चरणों में मिल रही है ।
इस सुअवसरपर उपकेशपुर की अधिष्टायिका सचायिका देवी अपनी सहचारिणी देवियों को साथ ले सूरीश्वरजी के दर्शनार्थे आई थी वह वन्दन नमस्कार के पश्चात् वहां की भद्रिक जनता सूरिजी के उपदेश की और झूकी हुई थी, यह देख देवी को बडा भारी आनन्द हुआ; कारण सूरिजी को इस प्रान्त में