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सूरीश्वरजीका उपदेश ।
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जनता का कल्याण करने में सदैव समर्थ है। ज्ञान ध्यान शील सदाचार तपश्चर्या और अहिंसा एवं धर्म परीक्षा के पूर्वोक्त चारों कारण इस पवित्र धर्म में मौजूद है। जैनधर्म के चौबीस अवतार ( तीर्थकर ) पवित्र शुद्ध चत्रीय वंश में उत्पन्न हुए थे, उन्होंने अपने सच्चे उपदेश से जैन धर्म को सम्पूर्ण विश्व का धर्म बनाया था, कालान्तर जिस जिस प्रदेश में जैन उपदेशक नहीं पहुंच सके; उस २ प्रान्त में स्वार्थप्रिय पाखण्डियोंने विचारे भद्रिक जीवों के नेत्रोंपर अज्ञान के पाटे बान्ध सदाचार से पतित बना के दुराचार की गहरी खाड में गिरा दिए और इसी दुराचारने दुनिया में त्राही त्राही मचा दी, यहां तक कि वह अपनी आखिरी हद तक पहूंच गया अब इस का भी तो उद्धार होना ही था आज सदुपदेशक महात्माओं के ज्ञान सूर्य का प्रकाश भारत के कौने २ में रोशन हो रहा है जिससे अधर्म के पैर उखड़ गए पाखण्डियों की पोप लीला खुल गई दुराचारियों के अखाड़े नष्ट हो गए यज्ञ जैसे निष्ठुर कर्म विध्वंस हो गए है व्यभिचार लीला से जनता घृणित हो गई वर्ण और जाति की जञ्जीरों टूट पड़ी है उच्च नीच के भेदभाव को भूल जनता एक सूत्र में संखलित हो रही है विश्व में अहिंसा धर्म की खूब गर्जना हो रही है आत्म बल्यान और परम् शान्तिमय धर्म स्वीकार करने में न तो परम्परा वाघा डाल सकती है और न उन पाखण्डियों की तनिक भी दाक्षीण्यता रही है अर्थात् वीरों के धर्म को आज वीरपुरुष निडरतापूर्वक अंगीकार कर रहे हैं । अतः एव आप लोगों का परम कर्तव्य है