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प्रभावशाली तपश्चर्या । (३९) कर्तव्य है । आप के भाग्रह को स्वीकार करने में हम को किसी प्रकार का इन्कार नहीं है पर हमारे कितनेक मुनियों को एक मास का कितनेक को दो मास का एवं तीन चार मास का प्रत्याख्यान है । आप जानते हो कि पूर्व संचित कर्म सिवाय तपस्या के नष्ट नहीं हो सक्ते है । तपश्चर्या से इन्द्रियों का दमन होता है, मन कबजे में रहता है, ब्रह्मचर्यव्रत सुखपूर्वक पल सकता है ध्यान मौन आसन समाधि आनन्द से बन सक्ते है इसी लिये ही पूर्व महर्षियोंने हजारों लाखों वर्षों तक घौर तपश्चर्या की थी और आज भी कर रहे हैं इत्यादि मोक्ष का मुख्य साधन तपश्चर्या ही है । हे मन्त्रीश्वर ! हम जैन साधु न तो मनवार करवाते है और न आग्रह की राह भी देखते है जिस रोज हम को भिक्षा करना हो उसी रोज हम स्वयं नगर में जा कर सदाचारी घरों से जहां कि मांस मदिरा का प्रचार न हो, ऋतु धर्म पाला जाता हो वैसे घरों से योग्य भिक्षा ला के इस शरीर का निर्वाह करने को भिक्षा कर लेते हैं वास्ते आप किसी प्रकार का अन्य विचार न करें हम आप की भक्ति से बहुत ही प्रसन्नचित्त हैं इत्यादि । __मुनिवरों की प्रभावशाली तपश्चर्या का प्रभाव राजकुमार और मन्त्रीश्वर की अन्तरात्मा पर इस कदर हुआ कि वे पाश्चर्य में मुग्ध बन गए और उन महात्माओं के आदर्श जीवन प्रति कोटीशः धन्यवाद देते हुए वन्दन नमस्कार कर वापस लोट गए और महाराज रूद्राट को सब हाल निवेदन किए । जिस को सुन कर दरबार साश्चर्य महात्माओं की कठीन तपश्चर्या का अनुमोदन