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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
उपसंहार में आचार्यश्रीने फरमाया कि महानुभावो ! मैं आप सज्जनों को एकवार नहीं पर कोटीशःवार धन्यवाद देता हूं । मुझे यह विश्वास नहीं था कि चिरकाल से चली आइ कुरुढीयों को आप एक ही साथ में तिलांजली देदेंगे । परन्तु मोक्षाभिलाषुक जीवों के लीये ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । कारण सच्चे क्षत्रीय शूरवीरों का यह ही धर्म है कि सत्य बात समझ में श्राजाने के बाद असत्य - अहितकारी कोई भी रुढी हो परन्तु उसको उसीक्षण त्याग देते हैं। आज आप लोगोंने वही क्षत्रीय धर्म का यथार्थ पालन कर अपनी शूरवीरता का प्रत्यक्ष परिचय करवा दिया है । अन्त में मैं उमेद रखता हूं कि जिनवाणी - अर्थात् सत्योपदेश श्रवण करने में आप अपना उत्साह आगे बढाते रहेंगे कि जिसमें आपका कल्यान हो ।
राजा, राजकुमार, मंत्री और नागरीक लोग आचार्यश्री का महान उपकार मानते हुए और शासन की प्रभावना करते हुए वंदन नमस्कार कर जयध्वनिपूर्वक विसर्जन हुए ।
शिवनगर में एक तरफ आचार्यश्री और जैनधर्म की तारीफ हो रही थी तब दूसरी और कईएक पाखण्डी लोग गुप्त बातें कर रहे थे कि देखिये, ये सेवडाओंने - साधुओंने लोगो पर कैसा जादु डाला ! गडरकि प्रवाह की तरह एक के पीछे प्रायः सभी लोगोंने मांस-मदिरा और शिकार का त्याग कर दिया ! अबतों यज्ञ-यागादि में बली व पिंड दान मिलना ही मुश्केल होगा। अगर इस तरह