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________________ प्राचार्यश्री का व्याख्यान। (३३) शुद्ध नहीं है तो उसमें धर्मरुपी बीज कैसे बोया जावे ? अगर ऐसी अशुद्ध भूमिमें बीज बो भी दीया जावे तो उसका फल क्या? अतः मैं आप सब सजनों को खूब जोर देकर पूर्ण विश्वास के साथ कहता हूं कि इन चारों दुराचार को इसी समय प्रतिज्ञापूर्वक त्याग कर दें, इसी में ही आपका हित-सुख-कल्याण है। आचार्यश्री के प्रभावशाली व्याख्यान की असर जनता के अन्तःकरणपर इस कदर हुई कि उन घृणित दुराचार से दुनियों का दिल एकदम हट गया। बस, फिर तो वीरों के लीये देरी ही क्या थी ? " कर्मे शूरा वह धर्मे शूरा" इस युक्ति को चरितार्थ करते हुए राजा-प्रजा प्रायः उपस्थित सर्व सज्जनों ने प्रतिज्ञापूर्वक हाथ जोड के कह दिया कि हे दयानिधि ! आज पर्यन्त हम अज्ञान अन्धकार में रह कर दुराचार का सेवन कर रहे थे परन्तु आज आपश्री के उपदेश रुपी सूर्य किरणोंने हमारे अन्तःकरणपर इस कदर का प्रकाश डाला है कि जिसके जरीये मिथ्या तिमिर-अज्ञान स्वयं नष्ट हो गया जिनकी बदौलत ही हम उन दुराचार से घृणित हो प्रतिज्ञापूर्वक आप भीमानों के समक्ष परित्याग करने को तैयार हुए है कि मांस, मदिरा, शिकार और व्यभिचार इन चारों कुव्यसनों का कमी सेवन नहीं करेंगे इतना ही नहीं परन्तु हमारी सन्तान भी इन दुर्व्यसनों का कभी स्पर्श तक न करेंगे । महाराज कुमार कक्वतों खड़ा हो कहने लगा कि मैं तो यहां तक कहता हूं कि मेरी राजसीमा में कोई भी शख्स किसी भी प्राणी को मारेगा तो जीव के बदले अपने प्राणों का ही दंड देना पडेगा.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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