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सरिजी का व्याख्यान. - (२९) कर्मों का प्रतिबिंबरुप फल प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि-एक राजा, दूसरा रंक, एक सुखी दूसरा दुःखी, एक धनी दूसरा निर्धन, रोगी-निरोगी; ज्ञानी-अज्ञानी, बहुपुत्रीय-अबहुपुत्रीय; सद्गुणीनिर्गुणी, सुंदर रुपवान्-बदस्वरुप, बुद्धिमान-निर्बुद्धि, यश-अपयश, कीर्ति-अपकीर्ति, विगेरे । एक का हुक्म हजारों मान्य करते हैं जब दूसरा हजारोंकी गुलामी उठाता है, एक पालखीमें बैठ सहेल करता है दूसरा उसे अपने खंधोपर उठा दुःखका अनुभव कर रहा है । यह सब पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म का फल प्रत्यक्ष द्रष्टिगोचर हो रहा है । प्यारे आत्मबन्धुओ ! जो मनुष्य बबुल का बीज बोता है वह मनुष्य फल भी वैसा ही पावेगा, न कि आम्रफल. और जो मनुष्य आम्रवृक्ष का बीज बोता है उसको आम्रफलकी ही प्राप्ति होती है न कि बबुलकी । अर्थात् जैसा बीज बोवेगा वैसाही फल पावेगा । इस न्यायसे जो बुद्धिमान लोग मनुष्यभव धारण कर शुद्ध देव-गुरु और धर्मपर अटल श्रद्धा रखते है और सेवाभक्ति उपासना, सत्संग, पवित्र अहिंसाधर्मका प्रचार क्षमा, दया, शील, संतोष, ब्रह्मचर्य, दानपुन्य, प्रभुभजन, और परोपकारादि पुन्यकार्योंसे शुभ कर्मों का संचय करता है उस जीवों को भवान्तरमें आर्यक्षेत्र, उत्तमकुल, आरोग्यपूर्ण शरीर, पूर्ण इन्द्रियोंकी प्राप्ति, दीर्घायुष्य, देव-गुरु-धर्मकी सेवा और अम्तमें स्वर्ग, एवं मोक्षकी प्राप्ति होती है जिससे पुनः जन्म मरण का फेरा ही मीट जाता है । जो अज्ञानी जीव इस अमूल्य मनुष्य जन्मको धारण कर जीवहिंसा करता है, असत्य बोलता है,