SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूरिजी की सेवामें. ( २७ ) सुबह श्रावश्यकादि कार्योंसे निवृत्त हो बडे समारोहसे राजकर्मचारी गण और प्रतिष्ठित नागरिकों के साथ राजा, राजकुमर, मंत्री वगैरह उस बगीचाकी ओर चले कि जहां महात्माजी ठेरे थे । राजा को जाते हुए देख कर लोगोंने गतानुगति युक्तिको वश हो राजाका अनुकरण किया तो कइएक कुतुहलवश राजाके साथ हो चले, कइएकने सोचा कि अगर अपुन न जायंगे और राजा को मालुम पडेगी तो अपनी दुकानदारी ही उठ जायगी इस भयसे, तो कइएकने सोचा कि देखें, इन सेवडों-साधुओंकी क्या मान्यता है और कैसा उपदेश देते हैं ? इत्यादि विविध कारणों को आगे रख कर सारा नगरके लोगोनें राजाका अनुसरण किया और अल्प समयमें राजा प्रजाके साथ उस बगीचे में सूरिजीके सन्मुख श्रा उपस्थित हुआ। वंदन नमस्कार कर राजा अपने उचित स्थानपर बैठा और सभीको शांतिपूर्वक बैठ जानेका इशारा किया | सर्वत्र शांतिका साम्राज्य छाया हुआ था उस समय राजकुमरने उठ कर सूरिजीसे नम्रतापूर्वक कहा कि हे प्रभो ! मैं आपका बडा ही अपराधि हूं क्योंकि मेरे ही आग्रहसे आप यहां तक तशरीफ लाये और मैंने आपकी तनीक भी खबर न ली। इस नगर में कोई साधारण मुसाफिर भी भूखा-प्यासा नहीं रहता है और आप महात्मा हमारे महेमान-अतिथि होते हुए भी क्षुधा - पिपासापि - डित रात्री नीकाली, यह बडी अफसोसकी बात है. इस हेतु मैं . आपसे क्षमा चाहता हूं । सूरिजीने राजा और श्रोतृवर्ग तरफ हस्तबदन और शीतल
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy