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________________ ( २६ ) जेन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. इधर यह बात सारे नगर में फैल गई कि कोई एक महात्मा आया है उनके साथ बहुत साधुओं की जमात है और शहर के बाहिर बगीचे में ठहरे हुए है । आज महाराज कुमार शिकार खेलनेको पधारे थे उनको भ्रममें डाल कर शिकार करना छोडवा दिया है । उनकी प्रांतरेच्छा यह है कि इस प्रदेशमें " अहिंसा परमोधर्मः का जोरशोरसे प्रचार करना; परन्तु सब लोग सावधान रहना और जहां तक सुना गया है उस महात्माजी का कल व्याख्यान भी होगा इत्यादि विविध प्रकारकी बातें वहाँ के मठधारीयों और ब्राह्मणों के कांनो तक पहुंच गई । भिन्नमाल, पद्मावर्ती और उपकेशपुरकी पुराणी बातें क्रमशः स्मृतिपटमें उतरने लगी इतना ही नहीं किन्तु दीर्घनिःश्वास पूर्वक कहने लगे कि - ऐसा न हो कि यहांपर भी इनलोगों का पगपसारा हो जा ! इस बातकी नगर में खूब ही हलचल मच गई और मठोमें मोरचा बन्धी भी होने लगी । दिनभर तो राजकार्य में व्यतित हो जाने से राजकुमार व मंत्रीने उन महात्माओं की कुछ खबर तक भी न ली; परन्तु राजकार्यसे निवृत्त हुए बाद उनको यह बात एकाएक स्मृतिपटमें उतर आई और वडे ही पश्चात्ताप पूर्वक मोचने लगे कि - अहो अफसांस है कि मेरे आग्रह और विश्वास पर जो महात्मा यहां पधारे है उनके खानपान आदिकी व्यवस्था करने के लिये मैने कुच्छ भी ख्याल न रखा - वे बीचारे भूखे प्यासे पडे होंगे, अहो ! मैंने यह कितना बूरा काम किया ! इत्यादि । राजकुमारकी यह पवित्र भावना मानों उनके कल्याण के लीये आमन्त्रण कर रही थी ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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