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शवनगरम प्रवेश.
( २५ ) सवार.- महात्माजी ! आपका कहना बहुत ही ठीकवास्तविक है । हम लोगोंकी प्रार्थना है कि आप हमारे नगरमें पधारे और वहां आपका ब्याख्यान पुनः सुननेकी हमलोग अभिलाषा रखतें है।
सूरिजी:-श्रापका नगर यहांसे कितना दूर है ?
दूसरा सवार:--महात्माजी ! ये शिवनगरके महाराजा रुद्राट् के कुमार कक्व कुँवर है। शिवनगर यहांसे मात्र दो कोसके फासले पर है। .. आचार्यश्रीने सोचा कि मेरा अनुमान आखीर मत्य निकला कि यह एक बडा नगरका राजकुमार है। अगर यह इतना आग्रहसे विनति कर रहा है तो अपनेको भी उसकी विनति मान्य करनेमें लाभ ही होगा इस विचारसे सूरिजी महाराज आदि नगरकी और रवाना हुए । इधर राजा कुमार मंत्री आदि भी सूरिजीके साथ चलने लगे । क्रमशः चलते चलते नगरके निकटवर्ति एक सुंदर बगीचा आया जब सूरिजी महाराजने सुविधाका स्थान देख कर वहाँ पर ठहरनेका निर्णय किया । राजकुमार
और मंत्रीने सूरिजीका मनोगत भाव समझकर वहांपर सब तरहका इंतजामके साथ सूरिजीको उतार कर अपनी राजधानीमें चले गये । और महाराजा रुद्राट् को सब हाल सुना दिये इस पर राजाने खुशी मनाते हुए दर्शन की अभिलाषा प्रगट की। इधर सूरिजी अपने शिष्य वर्गके साथ उस सुंदर रमणीय बगीचे की शितल छायामें अपना धर्मध्यानमें प्रवृत्त हुए ।