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( २४ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. कि इस समय चिंतामणि रत्न समान मनुष्य जन्मादि उत्तम सामग्री आपको प्राप्त हुई है । अगर आप चाहे तो इस सुअवसरमें अनेक प्रकारसे पुण्य संचय कर सक्ते हैं।
सवारः-महाराज ! हम धर्म-अधर्मसे अनभिज्ञ है । अतः आप ही बतलावे कि वास्तवमें सत्य धर्म कौनसा है ? किस धर्मकरणीसे जीवों का कल्याण होता है और धर्मका साधारण लक्षण क्या है कि जिसके जरीये हम धर्मके बारेमें कुछ जान सके ?
सरिजी:-ऐसे तो संसारमें अनेक धर्म प्रचलित हैं। यदि तत्तद् धर्मानुयायीयोंको पूछा जाय तो वह अपने २ धर्मको ही श्रेष्ठ बतलावेंगे, परन्तु वास्तवमें वही धर्म श्रेष्ठ है जिनमें अहिंसा धर्मको अग्रस्थान मिला हो और वही धर्म जीवोंका कल्यान कर मक्ता है । कहा है कि.
अहिंसा लक्षणो धर्मो, अधर्मः प्राणीनां वधः ।। तस्माद्धर्मार्थिना वत्स ! कर्तव्या प्राणीनां दया ॥१॥
अर्थात् धर्मका लक्षण अहिंसा और अधर्मका लक्षण प्राणीयोंकी हिंसा है । इस वास्ते धर्मकी अभिलाषावाले सज्जनोंको प्राणीयों के उपर दया रखनी चाहिये और आप जैसे सज्जनोंको तो आज ही से प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिये कि-आजसे हम कभी भी निरपराधी प्राणीयोंकी हिंसा नहीं करेंगे-किसी भी जीव को कीसी तरहका कष्ट तक न पहुंचावेंगे।