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सुरीश्वरजी का उपदेश. लेता ही है । इस कारण किसी भी निरापराधी जीव को तकलीफ नहीं पहुंचानी चाहिये । धर्मका यह मुख्य लक्षण है।
घुडसवार:- अगर ऐसाही हो तो उन जीवों को ईश्वरने पैदा ही क्यों किया ?
मूरिजीः-तो क्या आप यह मानते हैं कि दुनिया में जितने जीव उत्पन्न होते हैं वे सब शिकारी लोगों की उदरपूर्ति के लिये ही पैदा हुए है ? नहीं नहीं, यह मान्यता केवल शास्त्र विरुद्ध ही नहीं परन्तु मनुष्य कर्त्तव्य से भी बहार है । अगर ख्याल किया जाय कि एक शेर मनुष्य का शिकार कर रहा है उम को यदि उपदेश दिया जाय कि मनुष्य भक्षण से महा पाप होता है तब वह यही कहेगा कि-यह मनुष्य जाति को तो मेरा शिकार के लिये ही इश्वरने पैदा की है। क्या इस जवाब को श्राप योग्य और मुनासिब समझेंगे ? . घुडसवारः-नहीं, कभी नहीं.
मूरिजी:-तो फिर आपकी मान्यता मुनासिब-प्रमाणिक क्यों मानी जाय ! महानुभाव ! वास्तविक बात तो यह है किइश्वर न तो किसी भी जीव को पैदा करता है और न किसी को मारता है प्रत्युत सर्व जगत के जीव अपने २ शुभाशुभ कर्मानुसार उच्च व नीच योनि में उत्पन्न होते है और वहां पूर्व संचित कर्मानुसार ही सुख-दुःख भोगवते है। इस हेतु यदि आप अपना भला चाहते हो तो किसी प्राणी को कष्ट तक नहीं पहुंचाना चा