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सूरीश्वरजी का उपदेश. ( १९ ) उपदेश सुन उस घुडसवारके हृदय में धर्म जागृति उत्पन्न हुईजिज्ञासा वृत्तिने कुछ पूछने को चाहा ।
घुडसवार:-महात्माजी ! वह धर्म कौनसा है कि जिसके करने से सुख प्राप्ति हो ! -
सूरिजी:--भद्र ! वह धर्म ' अहिंसा परमोधर्मः ' है कि जिसका पालन करने से एक भव में तो क्या परन्तु भवोभव में जीव सुख, संपत्ति और मौभाग्यादि प्राप्त कर आनंद का भोक्ता बनता है। .
घुडसवारः-महात्माजी ! हिंसा और अहिंसा किसको कहते है ? कृपया स्पष्टतापूर्वक समझाइये ।
मूरिजीः -क्यों नहीं ? सुनो, “ अन्यस्य दुखोत्पादनं हिंसा" यानि किसी भी जीव को दुःख उत्पन्न करना या मारना उनको हिंसा कहते है । कोइ भी प्राणी ऐसी हिंसा में प्रवृत्ति करता है तो उनको पाप लगता है । पाप का फल है कि वह नरकादि गति में जाकर अनंत दुःखों को सहे । इससे विपरीत हिंसा का लक्षण है । यानि किप्ती भी जीव को किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाना और जहां तक बने उनका रक्षण करना उनको अहिंसा कहते हैं । अहिंसा धर्म को यथार्थ पालनेवाला प्राणी पुण्य के कल स्वरूप स्वर्ग सुखों के भोक्ता बनता है यावन् मोक्ष भी प्राप्त कर सका है।