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सिन्ध प्रान्तमें विहार.
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स्वीकार करली | बात भी ठीक है कि जिन के पूर्वजों से परोपकार वृत्ति चली आई हो, जिन्होंने पहिले भी ऐसे कार्यों में अच्छी सफलता प्राप्त की हो, वह उन्नति क्षेत्र में अपने पैरों को आगे बढाते रहे इस में आश्चर्य ही क्या है ? बस, आचार्यश्रीने सिन्ध जैसे विकट प्रदेश में विहार करने का निश्चय कर अपने शिष्य समुदाय को बुला के कहा कि प्यारे श्रमणगरण ! श्राज तुमारी कसोटी का समय है, हमने सिन्ध भूमि में विहार करने का निश्चय किया है जहां अनेक प्रकार के उपसर्गों का सामना करना पडेगा, विकट तपश्चर्या करनी होगी, अनेक वाद-प्रतिवादीयों से शास्त्रार्थ करना होगा. जिस महानुभावों में पूर्वोक्त सर्व कार्यों की शक्ति हो वह हमारे साथ बिहार करने को कमर कसके तैयार हो जावे ।
सूरीजी महाराजके वचनों को सुनते ही मानों गिरिराजकी . गुफाओंसे गर्जना करते हुए सिंह सन्तान मैदानमें श्रा खडे हुवे हो इसी भांति सेंकडो मुनिगज तैयार हो गये कि जैन धर्मके प्रचार के लये हम हमारे प्यारे प्राणों का भी बलिदान देने को तैयार हैं 1 श्राचार्यश्रीने उन मुनि पुङ्गवोंका ऐसा धर्माभिमान देख यह निश्चय किया कि मुझे इस कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी । इस इगदेसे उस श्रमण संघमेंसे - ( साधु समुदाय में से ) एक सौ मुनियों को साथ चलने की श्राज्ञा फरमा दी शेष मुनियोंके लिये उसी प्रान्त में परिभ्रमण कर उपदेश दे महाजनसंघ में वृद्धि करने की भी सुंदर व्यवस्था कर दी । तत्पश्चात् श्राचार्यश्रीने एकसौ विद्वान मुनिवरोंके साथ उपशपुर से विहार कीया । राजा प्रजादि बहुत दूर तक पहुंचाने को