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________________ (१२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. भारी उपकार हुआ खास कर के सद्ज्ञान का प्रचार प्रायः सारे प्रान्तो में फैल गया। ___ अन्त में चातुर्मास पूर्ण होने पर सूरिजी महाराज विहार की तैयारीयां करने लगे उस समय सञ्चायका देवी सूरिजीमहाराज को वंदन करने को आई, उसने सूरिजी के विहार की तैयारीयां देख पूछा कि भगवन् ! आप का विहार किस तरफ होगा? सूरिजी:-जिस क्षत्र में लाभ होगा उस तरफ विहार होगा। देवी:-अधिक लाभ तो सिन्ध प्रान्त में होगा । सूरिजी:-वहां ऐसा क्या लाभ है ? देवी:-सिन्ध प्रान्त में पाखण्डियों का साम्राज्य बंढ रहा हैं, हजारों लाखो प्राणीयों का बलीदान हो रहा है, व्यभिवार की भी न्यनता नहीं है तथापि वहां की जनता भद्रिक है, आप जैमे समर्थ आचार्य वहां पधारे तो बड़ा भारी लाभ होगा। आप के पूर्वजोंने अनेक कठिनाईयों को सहते हुवे भी इन क्षेत्रों को पवित्र बनाये हैं, आप जैसे विद्वानों को केवल इन्हीं प्रदेशों की जैन जनता का रक्षण करने में समय बिता देना मुनासिब नहीं है क्योंकि यहां तो अब साधारण मुनि भी रक्षण कर सकेंगे। अतः आप से मेरी अर्ज है कि आप सिन्ध प्रान्त की और बिहार करे, मुझे पूर्ण उमेद है कि आप के पूर्वजों की भांति आप भी इस कार्य में अवश्य सफलता प्राप्त करेंगे। सूरिजी महाराजने सचायिका देवी की विनति को सहर्ष
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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