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उपकेशपुर, चतुर्मास. अज्ञ जनता के भद्रिक हृदय में चिरकाल से वे कुरूढियों घर कर बैठी हुई थी उनको भी निर्मूल करने को मुनिपुङ्गव कम्मर कस्त तय्यार हो गये इतना ही नहीं पर पूर्ण परिश्रम द्वारा आप श्रीमानोंने उस कार्य में सुन्दर सफलता भी प्राप्त की थी। बात भी ठीक है कि जिन महानुभावोंने परोपकार के लिये अपना जीवन ही भर्पण कर दिया है उन के लिये ऐसा कौनसा कार्य असाध्य है अर्थात् धर्म प्रचार के लिये अपने प्राण निच्छरावल करने को तय्यार है वे सब कुच्छ कार्य कर सक्ते हैं इस कहावत को हमारे मुनिवर्गने ठीक चरितार्थ कर बतलाया था। ..
एक समय का जिक्र है कि वयोवृद्ध महाराजा उपलदेवने श्रीसंघ के साथ मिल कर नम्रतापूर्वक सूरिजी को अरज करी कि हे प्रभो! श्रीसंघपर कृपा कर के यह चातुर्मास यहाँपर ही फरमावें ।
आपश्री के विराजने से बडा भारी उपकार हुआ और होगा । हे दयानिधि ! आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिजीने तो हमारेपर असीम उपकार किये हैं, अब हमारी वृद्धावस्था प्रागई है, मैं विलकूल निवृत्तिपरायण होना चाहता हूं, अतः आप श्रीमान के विराजने से हमारी पाशा पूरण होगी इत्यादि । इस विनंति को सूरिजी महाराज किस तरह नामंजूर कर सक्ते थे ? आखीर उपलदेव गजा की विनंति स्वीकार कर वह चातुर्मास उपकेशपुर में ही किया। कईएक मुनिवरों को अन्यान्य क्षेत्रमें चातुर्मास करने की आज्ञा फरमा दी। तदनुसार वे मुनिजन भी यथायोग्य स्थानपर जाने को विहार कर गये । यहां महाराजा उपलदेव के कथनानुसार चातुर्मास में बडा