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________________ ( १० ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. भरा हुआ है । आपने केवल हमारे उपर ही नहीं परन्तु हमारी सन्तान परंपरा के उपर भी एक तरह का महान् उपकार किया है । हे प्रभो ! आप चिरकाल तक इस भारत भूमिपर विहार कर हमारे जैसे अज्ञान बाल जीवोंपर उपकार करते रहें । विशेष में यह चातुर्मास इस नगर में विराज हम को कृतार्थ करें । बस यही आप श्रीमान् के प्रति हमारी नम्र भावना है । और प्रभु प्रति प्रार्थना करते हैं कि आप जैसे सद्गुरु का भत्रभित्र में लाभ हांसिल हो । तत्पश्चात् जयनाद के साथ सभा विसर्जन हुई । इस समय उपकेशपुर के कौने २ में और घर २ में आनंद की लहरें उठने लगी- सारा शहर हर्षोत्साह से उमड उग्र । आचार्यश्री के विराजने से उपकेशपुर में बड़ा भारी उपकार हुआ जनता में धर्म जागृति और जैनधर्म की अच्छी प्रभाबना हुई अनेक जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा और बडी बडी विद्यालयों की स्थापना हुई जिस के जरिये संसार में सद्ज्ञान का प्रचार हुआ । उस समय आचार्यश्री का यह एक खास महा मंत्र ही था कि जहाँ जहाँ आप श्रीमान् पधारते थे वहाँ वहाँ नये जैन बनाना उनके सेवा-पूजा भक्ति के लिये जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा और ज्ञान प्रचार के लिये बडी बडी विद्यालयों की मजबूत नींवे डालनी इतना ही नहीं पर आपश्री के आज्ञावर्त्ति मुनिगण भी आप के सिद्धान्त का इस कदर अनुकरण करते थे जिस के फल स्वरूप में उपकेश पुर और उस के निकटवृत्ति ग्रामों में मिध्यात्व, अज्ञान और अनेक कुरूढियां प्रायः नष्ट होगइ थी तथापि छोटे छोटे गांवडो में
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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