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________________ यक्षदेवसूरिका उपदेश. (१) असीम परिश्रम का फल है । उपकारी पुरुषों के उपकारको सदैव स्मृतिपट पर याद रखना यह सबसे पहिला मनुष्यधर्म है कारण किकृतार्थपने को शास्त्रकारोंने मोक्षकी निसरणी बतलाई है। अगर कोई व्यक्ति प्रमादादि कारणों से अपनेपर किये हुए उपकारों को भूल जावे तो वह कृतघ्नी कहलाता है और कृतघ्नी के किये हुए दान, पुण्य, तप, संयमादि सुकृत कार्य सबके सब निष्फल बतलाये वास्ते मोक्षाभिलाषी पुरुषों को चाहिये कि अपने उपकारी महापुरुषों के उपकार को सदैव स्मरण में रखे इतना ही नहीं परन्तु उन के प्रति सदैव अंतःकरण पूर्वक भक्तिभाव बढाते रहें। इत्यादि, समय हो जाने से प्रापश्रीने यहींपर ही अपना व्याख्यान समाप्त किया। ___सूरिजी महाराज के सुमधुर मनोहर लालित्यपूर्ण वाक्यों .. को श्रवण कर राजा-प्रजा एक ही आवाज से बोल उठे कि हे प्रभो ! आप श्रीमान का फरमाना अक्षरशः सत्य है स्वर्गस्थ प्राचार्यश्रीजी की असिम कृपा से ही हम दुराचार के जरीये नरक कूप में पड़ने से बच के आज पवित्र जैनधर्म का आराधन कर स्वर्ग-मोक्ष के अधिकारी बन रहे है । हे करुणासागर ! स्व० सूरिजी के साथ हम आपका भी उपकार कभी नहीं भूल सक्त हैं। कारण कि हम को नरक के रस्ते पर से स्वर्ग की सडकपर लानेवाले दलाल तो आप ही है। हे प्रभो! ऐसे उपकारी पुरुषों का बदला इस भवमें तो क्या परन्तु अन्य भवों में भी देने के लीये हम सर्वथा असमर्थ है । आप श्रीमानों का परमोपकार हमारे केवल हृदय में ही नहीं परन्तु प्रत्येक नसों मे और रोम २ में
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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