________________
आचार्यश्री यक्षदेवरि
(७) संघमें ग्लानि-उदासीनता छा गई और पुनः अर्ज करी कि । हे भगवन् ! आप ऐसे वचन न फरमावे, कारण हम चाहते हैं कि माप श्रीमान् चिरकाल तक शासनोन्नति करते रहें।
___ दोनों आचार्य और श्रमणसंघ के पूर्ण परिश्रमद्वारा जैसे महाजनसंघ की संख्या में वृद्धि हो रही थी वैसे ही श्रमणसंघयति-साधु साध्वीयों में भी खूब वृद्धि हो रही थी। हजारों मुनि मतंगज इस भारतभूमि पर विहार कर मिथ्यात्व का नाश और सम्यक्त्व का उद्योत करते हुए चारों और जैनधर्म का झंडा फरका रहे थे। उस समय साध्वी समाज जनता को भारभूत या केवल संख्या में वृद्धि करने योग्य न था परन्तु उस विदुषी साध्वी. योंने महिला समाज पर इतना उपकार किया था कि जिसकी बदोलत महिलाममाज का अादर्श जीवन आज इतिहास के पृष्ठोपर सुवर्णाक्षरोंसे अंकित दृष्टिगोचर होता है । - आचार्य श्री यक्षदेवसूरि कोरंटपुरसे विहार कर उपकेशपुर की और पधार रहे थे यह शुभ समाचार सुनते ही उस प्रान्त में मानों एक किस्म का नवजीवन यानि चैतन्य चमक उठा; कारण कि इस प्रान्तपर आपका बडा भारी उपकार था, जनता आपसे पूर्ण परिचित थी और आपका चिरकालसे पधारना होनेसे मोक्षाभिलाषी भवि जीवों का आपके प्रति विशेष अनुराग हो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? दिन-प्रतिदिन आपके विहार की खबरें आ रही थी, जब आप उपकेशपुर के नजदिक पधारे तब तो महाराजा उपलदेव, कुमार जयदेव, मंत्री ऊड, तत्पुत्र तिलोकसिंह और नगर के