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(६) जन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. यक्षदेव सूरिका उस जनताके उपर उपकार भी है अतः उसप्रान्त की भद्रिक जनता को दीर्घकाल पर्यत उपदेशामृत के सिंचनसे वं. चित रखना योग्य नहीं है ऐसा विचार कर आचार्य श्री यक्ष देवसूरि को उपकेशपुर की ओर विहार कर जैनधर्मप्रचार करने की
आज्ञा फरमा दी जिसको बड़े हर्षके साथ यक्षदेवसूरिजीने शिरोधारण की।
____ आचार्य श्री कनकप्रभसूरि क्योवृद्ध होनेके कारण यक्षदेवमूरि और स्थानिक श्रीसंघने बहुत आग्रहपूर्वक विनंति करी कि हे भगवन् ! पारने इस भूमंडलपर विहार कर जनतापर बड़ा भारी उपकार किया है, साधु-साध्वीयों की संख्या भी आपने बहुत वृद्धि की है, इतनाही नहीं परन्तु भविजनों के कल्याण हेतु जिनमंदिरों में मूर्तियो प्रतिष्ठा, मद्ज्ञान प्रचारार्थ विद्यालयों की स्थापना
आदि अनेक धार्मिक कार्य किये हैं। इस समय आपकी वृद्धावस्था है अतः कृपा कर आप यहीं पर ही अपना स्थायीवास निश्चित करें जिससे हमलोगों को भी सेवा का लाभ अनायाससे प्राप्त हो सके । और आप जैसे परम पुनित पुरुषों के दर्शन मात्रसे हमारा कल्यान होता रहेगा । इसपर प्राचार्यश्रीने फरमाया कि-प्राप लोगों की भक्ति भावनादि प्रशसनीय है परन्तु हमको तो सिद्धाचल की यात्रा करना है कि जहांपर हमारे पूज्यगुरुार्य श्रीरत्न. प्रभसूरिने श्रीविमलाचल की आराधना करते हुए अपने इस नाश-' वान शरीरका त्याग किया और उसी पथ पर चलने की मेरी भावना है । फिर तो जैसी क्षेत्ररपर्शना! यह सुन श्री चतुर्विध