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________________ कोरंटपुर में धर्म जागृति. " का सामना करते हुए उन दुराचारीयों के साम्राज्य में एक ' महाजन संघ ' संस्था की स्थापना कर स्वल्प कालमें उनको उन्नताबस्थापर पहुंचा दीया यह कोई साधारण बात नहीं है परन्तु धर्मप्रचार के लिये प्यारे प्राणों को भी कुरबान करने को तैयार हो उनके लिये ऐसा कौनसा कार्य है जो उनसे न बन सके ! अर्थात् आत्मबल के सामने असाध्य कार्य भी साध्यरूप में परिणत हो जाता है । अस्तु यह तो आप पहिले ही पढ़ चूके हैं कि कोरंटपुर में दोनों आचार्यों के विराजने से जैनधर्म की चारों और दिनप्रतिदिन उन्नति बढती ही जा रहीथी। और आसपास वो देश विदेश से हजारों दर्शनार्थी सूरिजी महाराज की सेवा-भक्ति के लीये आ रहे थे । और अपने २ नगर की तरफ पधारने की विनंति भी कर रहे थे । उस समय उपकेशपुर के अग्रेसर लोगों का भी आगमन हुआ था । वंदन-भक्तिके पश्चात् वृद्धाचार्यजी से अर्ज करी कि हे करुणासिन्धो ! जैसे श्राप श्रीमान् अपने चरणकमलों से मरुभूमि को पवित्र करते हुए पधारे हैं और आपश्री को वहांका पूर्ण अनुभव भी है कि उस प्रान्त में विद्वान् श्राचार्यों की कितनी आवश्यक्ता है, वास्ते आचार्य श्री यक्षदेवसूरि को मरूभूमि में बिहार की आज्ञा फरमावें | वहांकी जनता आपश्री के पवित्र दर्शन की पूर्ण प्रतीक्षा कर रही है इत्यादि । इस पर आचार्यश्रीने विचार किया कि -बात ठीक है कि अव्वल तो यक्षदेवसूरिसे जनता परिचित है, और 1
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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