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आचार्य श्री कनकप्रभसूरि.
जनों को प्रतिबोध दे पूर्वोक्त संस्था ( महाजन संघ ) में खूब वृद्धि कर रहे थे । अर्थात् वह समय ही ऐसा था कि उस जमाने में 1 जैनाचार्यों के हृदय में धर्मप्रचार करनेकी वीजली चमक उठी थी । धर्मप्रचार करने में एक दूसरे से भागे कदम बढाने में अपना बडा भारी गौरव और आत्मोन्नति समझते थे ।
आचार्य महाराजश्री कनकप्रभसूरिके कोरंटपुरकी तरफ पधारने का हर्षोत्पादक समाचार सुन कोरंटपुर व उनके आसपास के प्रदेशमें आनंदमंगल छा गया और आगमन के समय श्रीसंघने बडा भारी प्रवेश महोत्सव कीया । आचार्यश्री पधारने से समाज में धर्म जागृति और उत्साह विशेषतया द्रष्टिगोचर होने लगा । सूरिजी महाराज के प्रभावशाली व्याख्यानादि प्रयत्न से जैनशासनकी दिनप्रतिदिन उन्नति होने लगी । आचार्यश्री यक्षदेवपुरिने कोरंटपुरका हाल श्रवण कर अपने पूज्य पुरुषोंके दर्शनार्थ कोरंटपुर पधारे कि जहां आचार्यश्री कनकप्रभसूरि विराजते थे। उनके मुनिगण श्रीसंघ के साथ बहुत दूर तक आचार्यश्री को लेनेके लिये सामने गये और बड़े ही समारोह के साथ श्रीसंघने आचार्यश्री का प्रवेश महोत्सव कीया | आपके शुभागमनसे नगरमें चारों और आनंद छा गया। एक पाट पर बैठे हुए दोनों श्राचार्य सूर्य और चंद्रकी अपूर्व शोभाको धारण करने लगे । इस तरह दोनों आचार्यों का परस्पर सम्मेलन होनेसे श्रीसंघ में धर्मस्नेह का समुद्र ही उलट पड़ा हो ऐसा नजर आता था | परस्पर ज्ञानध्यान व कुशलक्षेमका समाचार पूछने के बाद अपने विहार दरम्यान धर्मोन्नति, ज्ञानप्रचार और