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________________ (१०१) बैन जति महोदव प्र० बोबा. पुनः उन्नति कर सके ! वह उपाय प्रसाध्य है वा साध्य है इत्यादि विषयोंका विस्तृत वर्णन प्रापको प्रागेके प्रकरणोंसे ठीक रोशन होंगा. वि. सं. १६८२ में मेरा चातुर्मास मेडतेरोड फलोदी था उस समय प्रस्तुतः पुस्तक लिखने के ईरादासे ५००० इतिहास द्वारा जैन जातिकी सेवामें यह निवेदन कीया गया था कि आपके पूर्वजोंके किये हुवे पवित्र कार्य जैसे देशसेवा समाजसेवा धर्मसेवादि आदर्श कायोंका इतिहास जीतना आपके पास हो व आपके कुलगुरोके पास मिले उसको संग्रह कर आपकि ज्ञातिका गोग्वं-महत्वकि वृद्धि के लिये इस पुस्तकमें छपानेके लिये हमारे पास भेजवा दे कि उसे मुद्रित करवा दीया जाय ? पर अत्यान्त दुःखके साथ लिखना पडता है कि सिवाय १०-१२ सज्जनों के किसी प्रकारकी सामग्री नहीं मिली इसकों वैदरकारी कहो चाहे प्रमाद कहो. “ अलबत, नवयुवकों की ओरसे उत्तेजन, व शीघ्रता की अभिलाषा अवश्य मिली है." हे प्रभु ! हमारी जैन जातिकी कुम्भकरणि निंद्रा कब दूर होगा । हमारी जैन- जातिका इतिहास साहित्य के साधन ईतनी तो विशाल संख्या है कि उनकी बगवरी करनेवाला इतिहास किसी जातियोंके पास न होगा? पर दुःख इस वातका है कि वह पडा भण्डारों में ही सड़ रहा है तथापि इतना तो हम दावा के साथ कह सक्ते है कि जैन जातियोमे स्यात ही कोई ज्ञाति व उनकी साखप्रतिसाख रूप उप जातियों होगा कि जिन्होंके पूर्वजोंने थोडा बहुत ही महत्ववाले आदर्श कार्य नहीं किये हों ? कारण आज स्वल्प सी सोधखोज करने पर जैन जातिका इतिहास लिखते समय इतने साधन मिले है कि उनको
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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