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________________ ओसवाल जाति के वस्त्नों का पचय. (११) योंकी स्थापना करके ही जैनाचार्योने अपना कार्य समाप्त कर दीया ! पर इसके लिये प्रागे के प्रकरणों को पढनेसे प्रापको मली भ्राती रोशन हो जायगा कि जैनाचार्यों ने " महाजनसंघ " की स्थापना समय से लेकर विक्रमकी सोलहवी शताब्दी तक अपना कार्य अर्थात् जैनोत्तर लोगोंको जैन बनाते ही रहे थे इतनाहीं नही बल्के इस कार्य को बडी . तेजी के साथ चलाया था। प्रस्तुतः खण्ड में भगवान् ऋषभदेवसे वीरात् ८४ वर्षों का इतिहास भाप पढ चुके है आगे क्रमशः जिस जिस समयका इति. हास लिखा जावेगा उस उस समय के जैनाचार्योंने उत्तरोत्तर बनाइ हुई जैन जातियों व जैन जातियोंके दानीमानी " नररत्ना" वीर पुरुषोंकी करी हुई देश सेवा समाज सेवा और धर्मसेवादि प्रभावशाली आदर्श कार्यों के चित्रखांचके उन उन समयके इतिहासमे बतलाया जावेगा साथमें यह भी बतला दीया जावेगा कि किस विशाल भावनासे जैन जातियोंका " महोदय" हुवा अर्थात् उमतिके उन सिक्खरपर पहुँचीथी और किस किस संकुचित बिचारोंका जेहरीला विष फेलनेसे पतनका प्रारंभ हुवा क्रमशः वह जातियों अक्नतिकी गेहरी खाड में कैसे जा गिरी. प्राज जो जैन जातियो का मास्तित्व भोर गौरव नाम मात्रका रह गया इतना ही नहीं पर एक समय जिन जातियों के गौरवका साम्राज्य सम्पूर्ण देशमे फेला हुवा था उन जातियोंपर भाज असत्याक्षेपोंकी कैसी भरमार हो रही है ? उन प्रक्षेपोका निगकरण करना, व जिस कारणसे अधःपतन रूके भोर किस किस उपाय से
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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