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________________ (१००) जैन जाति महोदय प्र० चोथा. झाति बडी भारी उन्नति पर थी इस विषय में बहुत से प्रमाण उपलब्ध है । पाटण (अणहलवाडा ) की स्थापना के समय सेकडो श्रीमाल लोगों को चन्द्रावती व भीनमाल से आमन्त्रण पूर्वक बुलवा के पाट्टण में वसाये थे उन कि सन्तान भाजपर्यन्त पाट्टण में निवास कर रही है विशेष श्रीमाल ज्ञाति का हाल भागे के प्रकरणों में लिखा जावेगा भविष्यके लिये शुभ सूचना. जैन जातियों का इतिहास लिखने के इगदासे इस किताब का नाम “जैन जाति महोदय" रखा गया है। जैन जातियोंका प्रादुर्भाव होनेके पूर्व भगवान महावीरके भोजुदा शासनमें चारो वर्ण विशाल संख्या अर्थात् ४० क्रोड जनता श्रद्धा पूर्वक जैन धर्मपालन कर रहीथी पर वह वर्णरुपी जंजिर में जकडी हुइ थी. उस जंजिरको प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि व रत्नप्रभसूरिने एकदम तोड के मरूस्थल प्रान्तमें "महाजनसंघ" की स्थापनाकी उनकी शाखारूप (१) श्रीमाल (२) पोरवाड (३) ओसवाल ज्ञातियों है इन ज्ञातियोंका उत्पत्ति स्थान व समय और प्रतिबोधिक प्राचार्यो का इतिहास के साथ परिशिष्ट नं.१-२.३ मे प्रस्तुत: तीनों ज्ञातियों का किंचित् परिचय करवा दीया है किन्तु केइ कारणो को लेकर इस पुस्तककों एकही साथमें सम्पूर्ण प्रकाशित नहीं करा सका. ईसपर हमारे पाठक वर्ग यह नहीं समझ ले कि इन ज्ञाति
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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