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( ९६ ) श्री जैन आति महोदय प्र० चोथा. उपदेश द्वारा जैन बनाया, और उस की श्रीमाल झाति स्थापन करी इत्यादि इस्मे राजा व प्राचार्य के नाम हमारी पट्टावलियों से प्रतिरक्त है पर श्रीमाल नगर से श्रीमाल मति किं उत्पत्ति का समय हमारी पट्टावलियों से मिलता झूलता ही है।
(५) उपकेशगच्छ चारित्र, प्रभाविक चारित्र, प्रबन्धचिंतामणि, और तीर्थकल्पादि, प्राचीन व अर्वाचिन ग्रन्थों में श्रीमालनगर श्रीमालपुर श्रीमालक्षेत्र श्रीमालमहास्थानादि का प्रयोग दृष्टिमोचर होता है इन ग्रन्थकारोंने श्रीमालनगर को इतना प्राचीन माना है कि जितना पट्टावलिकारोने माना हैं ।
(६) उपकेशगच्छ प्राचीन पट्टावलि में एसा भी उल्लेख मिलता है कि श्रीमालनगरके लोगों को राजा की तरफ से कई कठिनाइये उठानी पड़ती थी अन्त में वह लाचार हो श्रीमालनगर का त्याग कर चन्द्रावती नगरी बसाई व अन्य स्थानों का सरण लिया । शेष रहा हुए नगर की व्यवस्था भीमसेन राजाने कर नगर को प्राबाद किया वास्ते श्रीमाल का नाम भीनमाल हुवा वहां से भी बहुत से लोग उपकेशपुर में जा वसे तब भीनमाल की साधारण स्थिति रह गई थी इत्यादि इस हालत में हमारे ग्रन्थकारोने कहां पर प्राचीन नाम श्रीमाल कहां पर अर्वाचिन नाम भीनमाल का प्रयोग अपने प्रन्थों में किये है यह प्रथा केवल इस नगर के लिये ही नहीं पर जाबलीपुर माडव्यपुर उपकेशपुर नागपुर शाकम्भरी आदि स्थानों के मूल नाम वदल के क्रमशः जालौर मंडौर भोशियों नागोर सांभर यह नाम प्रचलित होने के बाद भी कितनेक शिलालेख व पंथकारोने मूल नामो का प्रयोग किया