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________________ श्रीमाल ज्ञाति का वीररत्न. ( ९५ ) इस लेख से यह सिद्ध होता है कि उपकेशपुर की स्थापना पूर्व श्रीमाल नगर वडी भारी जाहोजलाली पर था । उपकेशपुर का समय विक्रम पूर्व पांचवी शताब्दी के लगभग का है तो श्रीमालनगर इन से कितनाप्राचीन होना चाहिये वह पाठक स्वयं विचार करे । ( ३ ) भीन्नमाल नगर के तलाव पर एक जैन मन्दिर का खंडहरो में प्राचीन शिलालेख मिला जिसक अक्षारंस नकल " प्राचीन जैन लेख संग्रह दूसरा भाग लेकांक ४०२ में दी गई जिसका आदि लोक यहाँ दे दीया जाता है दे० ॥ यः पुरात्र महास्थाने श्रीमाल स्वयमागताः । सदेव श्री महावीरों दया ( द्वा) सुख संपदं ॥ १ ॥ + + + यह लेख वि. सं. १३३३ श्राश्वन शु० १४ का लिखा हुवा है इस समय के पूर्व हमारे आचर्यो की यह मान्यता थी कि भगवान् महावीर स्वयं श्रीमाल नगर में पधारे थे पर लेख के समय पूर्व कितना प्राचीनकाल से यह मान्यता चली आई हो इस का निर्णय करने को इस समय हमारे पास कोई साधन नहीं है पर यह अनुमान हो सकता है कि किसी प्राचीन ग्रन्थ व परम्परा से चली आई मान्यता को लेख के समय लिपीबद्ध कर ली होगा । खेर । तात्पर्य यह हैं कि अगर भगवान् महावीर के समय श्रीमालनगर अच्छी उन्नति पर हो तों हमारी पट्टावलियों के प्रमाण से यह लेख भी सहमत हैं । ( ४ ) महाजन वंस मुक्तावलि नामक पुस्तक में लिखा है कि भगवान् गौतमस्वामी श्रीमालनगर पधार के राजा श्रीमल्ल कों
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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