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'श्रीमाल झाति के वीररत्न. (९३) .. इन लेखों से श्रीमाल नगर की इतनी प्राचीनता सिद्ध होती है कि वह द्वापर के अन्त में बसा है और इसी नगर के नाम से 'श्रीमाल' ज्ञाति की उत्पत्ति हुई और श्रीमाल झाति की गौत्रज लक्ष्मीदेवी है। "
(२) विमल चारित्र में एसा भी उल्लेख मिलता है कि उपकेशपुर कि स्थापना समय श्रीमाल नगर के बहुत से लोग पा कर उपकेशपुर में वास किया वह लोग बडे ही घनाव्य-प्रतिष्ठित और वडे वडे व्यापारी थे इस लिये ही उपकेशपुर शीघ्रता से व्यापार का एक केन्द्र स्थान बन गया + + +
याचकों की आजीविका उन के यजमानो पर ही निर्भर है प्रतएव जहाँ यजमान नावे वह याचकों को भी जाना पडता है इस नियमानुस्वार श्रीमाल नगर के लोग आ कर उपकेशपुर में वास किया तब उन के याचक ( ब्राह्मण ) भी उन के पिच्छे पिच्छे उपकेशपुर में श्रा वसे । उन यजमानों पर ब्राह्मणों का कर इतना जोरदार था कि "पंच शतीश षोडशाधिक' अर्थात् ५१६ टको का लाग दापा रूप टेक्ष था. इस जुलमी कर से जनता उस जमानामें बहुत दुःखी थी पर उन लोभानंदी ब्राह्मणों के जुलम से उस जमानामें छूटना कोइ सहज वात नहीं थी परन्तु हरेक कार्य की स्थिति भी हुवा करती है एक समय का जिक्र हैं कि जैन मंत्री ऊहड व्यापार निमित म्लेच्छ देशमें जा के
आया था उस पर उन ब्राह्मणोंने यह ठेराव कर दीया कि ऊहड मंत्री म्लेच्छ देश में जा के आया है इस कारण इस के वहां क्रिया काण्ड कोइ भी ब्राह्मण न करावे कि जहां तक कह शुद्धि न करा लेवे