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(९९) जैन जाति महोदय प्र. चोथा. पास भेजे ताके इस मुक्ताफल कि माला के साथ उसे भी सामिक कर दीये जाय किमधिकम्
परिशिष्ट नम्बर ३ ( श्रीमाल ज्ञाति ) - श्रीमाल ज्ञाति-श्रीमाल ज्ञाति का उत्पत्ति स्थान श्रीमान नगर है और इस ज्ञाति के प्रतिबोधक प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि जो भगवान् पार्श्वनाथ के पांचवे पाट्ट पर हुवे है इस शातिके ऐतिहासिक प्रमाणों के विषय में हम पहले ही लिख चुके हैं कि इस ज्ञाति का श्रृंखलाबद्ध इतिहास जैसा चाहिये वैसा नहीं मिलता है इतने पर भी हम सर्वथा हताश भी नहीं होते हैं। कारण सोधखोज करने पर एसे बहुत से प्रमाण मिल भी सक्ते है कि हमारी पट्टावलियों के प्रमाणों को स्थिर कर रहे हैं जिससे कतीपय प्रमाण यहां दे देना समुचित होगा। (१) विमल प्रबन्ध और विमल चारित्र. श्रीकार स्थापना पूर्व । श्रीमाल द्वापरान्तः ।
श्री-श्रीमाल इति ज्ञाति । स्थापना विहिताश्रियाः॥ भेट तणि लषमि वावरी । श्री प्रासाद सुरंगउ करी । थापि मूरति महुर्त जोई। लषमि लखणवंति होई ॥ द्वापर माइ जे हुइ थापना । सहुना भय टल्या पापना । श्रीगौत्रजा श्रीमाली तणि । करइ चिंता प्रासाद भवि ॥