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जैन जाति महोदय प्र० चोथा. धिप राजा भोज भाग के सिन्ध का सरणा लिया और शाकंभरी मरूस्थल मेवाड जालौरादि सौ राजाओं पर विजय करता हुवा अंबिका देवी की कृपा से विमलशाहा एक छत्रपति राजा कहलाने लगा, एक समय विमलशाहाने रामनगर के बारहा सुलतानों कि वाव सुण प्रापने एकदम शैन्या एकत्र कर एसा हुमला किया कि सुलतानों को पराजय कर अपना किंकर बना उन के बारहा छत्र छीन के अपने सिर पर धारण कर लिया, इत्यादि विमल कि वीरता केवल मनुष्यो के साथ ही नहीं थी पर देवतावों को भी अपना खडग वत. लाया था इस विषय में एक प्राचीन कहवत है कि
मांडी मुर कीरइ करइ । छंडीया मांस ग्राह । . वीमलडी खंडउ काविउ | नाहउ बाली नाहा ॥
अर्थात् 'विमलशाहा भाबु पर जैन मन्दिर बना रहा था तब बहों का अधिष्ठायक वाली नाग देव दिन को बना हुवा मन्दिर रात्री में गिरा देता था जब रात्री में विमलशाहा उस देव को पकडा, देवने मांस कि बलि मागी. यह, सुनते ही वीर विमलशहाने अपनि कम्मरसे जमहलता खडग निकाला जिस्कों देखते ही देव प्राणों को ले के भाग गया और उपद्रव भी बन्ध कर दीया, इत्यादि विमलशाहा कि वीरता सुनते ही उन्ह के शत्रु कम्प उठते थे. इस विषय में किसी कविने एसा भी कहा है कि " रणि राउलि शूरा सदा देवी मांबावी प्रमाण । पोरवाह परगटमल्ल मरणे न मुके माण" जैसे प्रोसवाल वीरों के लिये 'अरडकमल्ल' का खीताब है वैसे ही पोरवाडो में परगटमल्ल का विरूद है ॥