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विमलशाह की वीरता.
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जैसे शूरवीर और महादानेश्वरी नररत्न पैदा हो कर केवल पोरवाड ज्ञाति कों ही नहीं पर जैन धर्म्म कों उन्नति के सिखर पर पहुंचादीया था । जिस विमलशाहा की कीर्ति के विषय जैन और जैनेतर लेखकोंने बडे बडे ग्रन्थ निर्माण कर कृतार्थ हुवे है जिस विमलशाहा की उदारना की तरफ हम देखते है तब उनके बनाये हुवे भाबु और कुंभारियाजी के जैन मन्दिरों की शिल्पकला केवल भारत में ही नहीं पर युरोप तक प्रसिद्धि पा चुकी है। आगे हम विमलशाहा की वीरता की नरफ दृष्टिपात करते है तो हमारे आश्चर्य की सिमा तक नहीं रहती है । जिस ज्ञाति को शाक भाजी खानेवाले वाणियों के नाम से उपहास कर कायर बतलाते है पर उन ज्ञ लोगों को यह ज्ञात नहीं हैं कि शाक भाजी खानेवाले में कितनी वीरता रही हुई है जिस ज्ञाति के वीर पुरुषों कि वीरता का वीर चारित्र किस वीरता से भूषित है उनका एक उदाहरण हम यहां पर वतला देना समुश्चित समझते हैं यथा
तद्भीत्याऽष्टादश शत ग्रामाधिप धारानृपो नष्टवा सिन्धु देश गतः तदानु शाकम्भरी, मरूस्थली, नेरपाट, जावलीडुरादि नृपति शतं अंबिका प्रसादात् साधयित्वा छत्रानेकपधारयत तेनैकदा राम नगराधिप द्वादश सुरत्राणाः श्रुताः अकस्मात् महा शैन्य मेलापनं कत्वा सुप्ता एवं वेष्टिता युद्धे भग्नाः किंकरा संजोता तदीयानि द्वादशा तपत्राणि स्व शीर्षे परिधारितानि नच्चरित्रंतु ॥
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प्रर्थान् विमलशाह के भय से अठारासौ ग्राम का नाथ धारा