________________
पोरवाड ज्ञाति के नरत्न. . (a) परिशिष्ट नं. २ पोरवाड ज्ञाति.
पोरवाड ज्ञाति-यह प्राग्वट ज्ञाति का अपभ्रंस है प्राग्वट ज्ञाति का मूल स्थान तो प्राग्वटपुर जो गंगा नदी के किनारे पर एक प्राचीन नगर था। वाल्मीक रामायण में इस नगर का उल्लेख मिलता है जबसे प्राग्वटपुर के लोग राजपुताने की तरफ पाये तबसे वह प्राग्वट कहलाने लगे-जैसे गुर्जर-मालव वगरह ज्ञातियो है जहाँ यजमान जाते है वहां उन के याचक भी जावे यह एक स्वाभाविक वात है तदानुस्वार प्राग्वटपुर के लोगों के पीच्छे पीच्छे उनके गुरु ब्राह्मण भी राजपुताने में प्रा बसे । जव पद्मावती नगरी में जैनाचार्य स्वयंप्रभसूरिने जिन गजपुतादि को उपदेश द्वारा जैन बनायें उस समय जो राजपुतों के गुरु प्राग्वट ब्राह्मण थे उन्होंने सूरिजी से अर्ज करी की हे प्रभो ! हम और हमारे यजमानोंने पाप की प्राज्ञानुस्वार जैनधर्म को स्वीकार किया है तो हमारा कुछ नाम भी इस के साथ चिरस्थई रहना चाहिये इसपर सुरिजी महाराजने उन सब का 'प्राग्वट वंस' स्थापन किया उसी प्राग्वट वंस का अपभ्रंस 'पोरवाड' हुवा है पोरवाडों के रीतरिवाज खानदान आचारव्यवहार सब भोसवालों के सदृश्य है पोरवाडो कि कुलदेवी अंबिका है " जो सम्यक्त्व धारण कर ली थी। उसने पोरवाडो पर प्रसन्न हो के सात दुर्ग दीये और उन वरदानसूचक पोरवाडो में सात महा गुण प्रगट हुवे जिस विषय में
सप्तदुर्ग प्रदानेन गुण सप्तक रोपणात् । पुट सप्तक वंतोऽपि माम्बट ज्ञाति विश्रुता ॥ ६५ ॥