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________________ भोसवाल शाति के नररत्नों का प० . (५) धर्म हेते धन खरचियों, पोपाशाहा प्रयास 1 + + + वेदों ने वरदान । भागे ही सावका तणो। खपिया तेरह खान । तषियों मुहतो तेजसी ॥१॥ कोडो द्रव्य लुटावियों । होदा उपर हाथ । प्रजो दील्ली को पातशाहा । राजा तो रूघनाथ ॥ २ ॥ मोसवाल उचागणा । भोमा हंदी वाड । तन धन सघलो ते दीयो । राख्यो देश मेंवाड ॥३॥ लाख लखारो निपजे । वड पीपल कि साख । नटीयों मुत्तो नैणसी | ताबों देण तलाक ।। ४ ॥ जगडू जग जीवाडीयों। दीनों दान प्रमाण । तेरा सो पन्नडोतरे । अल विच उगो भांण ॥ ५॥ सो सोनारो एक ठग । सो ठग ठाकुर एक । सौ ठाकुर भेला हुवे । जद प्रकल मुत्सदी एक ॥ ६ ॥ थेरू जैसाणे हुवो । प्रासकरण मेडते । भरी मेवाडमे शाहा भोमो॥ कच्छरी धरतीमे जगडवो कहिजे | जिम जगमे टोपरेशाहाटामो ॥७॥ . एक चारण अपने यजमान कि तारीफ.. वागो जब यह मांडियों । तब नीवतियो सब मेवाड । गोलारोठारी खेंगाली । जदा हुवा धूधला पहाड ॥ इस पर एक जैन कविने कहा किजगरूप जुग जिमाडीयों । निवतीया सब नव खण्ड । सिर तपिया वासंग तणा | काजलिया ब्रह्माण्ड । १ जोधपुर नरेश. २ भंडारी ओसवाल. ३ जालोरा वदमुता. ४ जीमणवार.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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