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________________ ( 60 ) श्री जैन जाति महोदय प्र० चौथा. सोजत असीमियाणी, सोनीगरा जुडता श्राया श्राद जुगाः मुरधरतणा, मुहतो घरमान सवाया || + वीर वैद मुहत्ता पाताजी को गीत. 1 ठाकुर पांचसो पांच भूतथी रहे | संकेतन नित भरखे | सहु सागखो हुवो सीमयायो । ' पातल मरू कीरती पाखे ॥ , + + + + नाडी नाडी नित भुरज भुरजि, थुडतो जाय अरियों थाट | हंस 'पतो ' बुगलो को लायो । देही दुरंग हुवो दह वाट || + + मोटाइ पीसण तुं हाल ' मुहत्ता ' मह कोइ छडेन फोफमकार । नारायण कन्हें ला नारायण, तु यो बन्ध तलवार || खमे न ताप हा दल खल । सनमुख छडे पाखर शेर । दानी हाथ रायमल दुजा । सूरडा चमक्या देखी समसेर || + + हिरण रण, खेत हाथोडो अवध सास धमणि तप रोस सहई । प्राठि पोहर थकित उभो धडदल रयण घडे घण घाई ॥ करीयो गेस कोप्यो दावानल, धडधड छैड घाइ पडै I वैनाणी ' पातावत' रिबद्ध जडा उखेडत त्रिजड जडै || सीवाणा का वैद मुहता राजसी. गढ सीबायो गाजियो, राजियों ले तलवार । प्राण देइ पण राखियों, सुखी कोयो संसार ॥ + + + + +
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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