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ओसवाल ज्ञाति के नररत्नोंका परिचय.
प्राथ हाथ उधमें करे उपकार जग केतही । पातशाहा पोषीजै, जुगत दीखावे जैतसही || सरदर सेइण संघमें सिरे, जगह जुग तारलीलीलो ।
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महराज ' सिंह 'दाता' समुद' भादू सुत्त उदयो इसो |१|
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सेवत दुवार बडे बडे भूपत, देख सभा सुरपति ही भूले । रइस धराधर सोभीतद्वार, जैसे वनमें केसर फूले ॥ संचेती कुलदीपक प्रगटयो, देख कबिजन एसे बोले । सिंह 'मेहराज' के नन्द करंद, केहत कमीच सतरारूसोलो ॥ रणथंभोर के संचेतीयो का संघ ।
मारवाड मेवाड सिंध धरा सोरठ सारी । कस्मीर कागरू गवाड गीरनार गन्धारी ॥ अलवर धग श्रागगे छोड्यो न तीर्थ थान । पूर्व पश्चिम उत्तरदानि प्रथवी प्रगट्यो भान, नरलोककोइ पूज्या नहीं, सचेतीथारे सारखो । चन्द्र भान नाम युग युग अचल, पहपलटे धनपारखो ||
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सोजत के वैद मुहता ।
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रह्यो गढ सोजत बिंटी रायमल, कोट खोले ' पतो ' कहै । मोटी रीत घरे मुहतोरे, राज मुहतों गढ रहे | + वीवर गढ़ है कीणी खेतावती, अजमालौत रहे गढ भोर । रीत उजाला वल ' राजडो ' जगड तयो रह्यो जालोर || +
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