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श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
पडियो भयंकर काल महा विकराल भुजंग जिसो || भू ब्रह्मांड थइ एक, तब पुच्छे राय कर किसो । शाहा सिरे लक्ष्मी घरे इयानगरी शाहाटीकुवसे | तेडाव्यो तीणबार जब, जातो काल डग डग हसे |
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धारा नगरीके वैद मुहत्ता.
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धाराधिप देहलने, पद मंत्री सिर थापे । शाहा मोटो सामन्त, जगत सगलो दुःख नत्र खंड नाम देशल कियों, सोनपाल सुत्त जाणे सहु ॥ दुनियों राखा दुकालमें, वैद मुहत्तोऩणां गुण केता कहु ॥ १ ॥
जैन हत्थुडिया राठोड शाह रत्नसी.
साकर गढ सा पुरुष, खारदींवा खेतडा । पुधीयाल (ने) दानका माल हो श्राप तडा । खेमशी लखीपाल लख श्रोपमा केम वखा ॥ नवखंड देश खेरडाबडा वड नाम परयाणु । श्रीसवाल गोत थारो अचल वाचामे लखमी वसी ॥ वीरम सुत्तन किजे बहुत युग युग राज रत्नसी । शूरवीर संचेती.
थांन सुधीर रिणथंभ, मान श्रापै महीपति । दुनियों सेवत द्वार सदा चित्त चक्र व्रत है संचेति ॥