SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा. पडियो भयंकर काल महा विकराल भुजंग जिसो || भू ब्रह्मांड थइ एक, तब पुच्छे राय कर किसो । शाहा सिरे लक्ष्मी घरे इयानगरी शाहाटीकुवसे | तेडाव्यो तीणबार जब, जातो काल डग डग हसे | + + ( ७८ ) + धारा नगरीके वैद मुहत्ता. का 1 धाराधिप देहलने, पद मंत्री सिर थापे । शाहा मोटो सामन्त, जगत सगलो दुःख नत्र खंड नाम देशल कियों, सोनपाल सुत्त जाणे सहु ॥ दुनियों राखा दुकालमें, वैद मुहत्तोऩणां गुण केता कहु ॥ १ ॥ जैन हत्थुडिया राठोड शाह रत्नसी. साकर गढ सा पुरुष, खारदींवा खेतडा । पुधीयाल (ने) दानका माल हो श्राप तडा । खेमशी लखीपाल लख श्रोपमा केम वखा ॥ नवखंड देश खेरडाबडा वड नाम परयाणु । श्रीसवाल गोत थारो अचल वाचामे लखमी वसी ॥ वीरम सुत्तन किजे बहुत युग युग राज रत्नसी । शूरवीर संचेती. थांन सुधीर रिणथंभ, मान श्रापै महीपति । दुनियों सेवत द्वार सदा चित्त चक्र व्रत है संचेति ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy