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ओसवाल ज्ञाति के वीरोंके छन्द.
कहर कांठेतयां बेरहर कांपियां, जुडा जंमजाल सोइ घातजांये । अभि थांभा दीये वैदबंसी श्राभरण, आठ कुल बाथगहि हाथ प्रांणे. २ भीभीम रामरे लंकदल भांजियां, भीछ डमघजरो थाट भंजे । पिस पाधोरि बातो कोइ पांतरो गिरसिखर हाथलां मारिगंजे || पाडि भड देवडा, मेळ परतालीया पिसणतो सरस कुण थाइ पुजे । त्रिजड हय सीह प्रणवीह माहरा, धकारो मारीयो मेह धुजे ॥ कलब भीरसहंन भारी भुज भीम सम, भरथीमल भारथ जोधन कीधु रसी । रठमठ करन कठिन गढ को गाढे, दुकि ढोहि ढाहि देत तनकमे तुरसी ॥ जिनदासनंद जरजरी जर बकसत, बल्ह कवि बिरद कुरसी दर कुरसी । साहिनि मालिम सिकबंध निके सिरताज, साकरे सनाह सुन्यो टाकुरसी ||
भाद्र गौत्र समदडिया साखाके वीर.
गुरु कक्कसूरि करी कीरपा, जैतसी सुत जग उगीयों । सगलों सिरे संघपति, यो पारसनाथ भल पूजियो || तुरी चढीया तीन हजार, गज उगणीस मद करतां । उठों लदीजे भार सहस सात भरडाटा करतां ||
सहस चार रथ जाण सहस नरनारी नही पार गीणती भाद्र गोत्र उदयो भलो समुदो सम थाहा । समदडिया कुल उजालीयों धर्मशी वड वहा ।
दस
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गाडी साथे ।
लेवे हाथे ॥
कुण
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