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________________ जैन जातिमहोदय प्र० चोथा. ठाकुरसी मेहता [ श्रेष्टिगोत्र वैद्य साखा ] इलां तेमबरियांडनिति बैद्यबंसि श्राभरण | वेर तालधुर लग वठिलो || फोजहा जमरी उपरे फोरवे; नाखियो ठाकुरे तुरी नीलो. यो मसुडे लोहडा; खांग मोटां सीरे खाग खाले । वेग श्रमराहरो लियो खेरवे; किलम घडसेबिची बडो काले ॥२॥ बड दान दीये मिलिया बडपात्रा; अरी हाथल रहचणो अबीह । ठाकुरसीह कहावे ठाकुर ; सीह कहावे ठाकुरों ठाकुरसीह ॥ ३ ॥ जिणदासोत सुदिन दे जांणी; खगतलपे सिर दीये खल | बोलावे राजिंद ता ब्रद बोलावे जगि सरस बल. सीमांहरो सुदिन सुरातन मौहतौ ददू बिधि निरभे मंण । जग भूपाल लंका को जिणि वडोसु जोसी ब्राह्मण. ॥ ५ ॥ saar for गं बभीषण लंका घटबीसवीयो न्याय घणो । हे चढे तिथि देत नणे गढ, ताइ बकसो जिणदास तणो ॥ ६ ॥ || 8 || ($) गखे ह्या दुरंग सहु राखस, हेम उतरे नही हीये । ठाकुरसी जिता सह ठेले, दिनहेकै परवाह दीये ॥ ७ ॥ जेसलमेर परांपे जांनी, काले जिसे न आयो कोय | गढा गाहा गिरद मेवासा घर गिणे, वडग जड बाजती चल खेले । सीघरे हुकमी जिणदासरो सीघलो ठाकुरो भाठवे अनड ठेले. १
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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