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________________ ओसवाल ज्ञातिके वीरोंके प्राचीन छन्द. कहि समय लोडा; दुनी दिखाह देव । M को प्रमांन जोपे एसो लाह लीजिये || श्रन संघपति को संघ जोपे कीयो चाहे । कोपाल सोनपाल को सो संघ कीजीये || सबल राइ बिभार; निबल थापना चार । बाधा राइ बंदि छोर अरि उरसाजको || डेराय अवभ; खितपती रायखंभ । मंत्रीराय आरंभ; प्रगट सुभ साजको || कब कहि रुप भूप राइन मुकटमंनि त्यागी राइ तिलक; बिरद गज बाजको || हय गय हेमदांन; भांन नंदकी समांन । हिंदु सुरताणि सोनपाल रेखराजको. ॥४॥ सैन र समके. पैज पर पासनके निज दल रंजन. भंजन परदलको || मदमतवारे; बिकरारे अति भारे भारे । कारे कारे बादरसे बास वसु जलके ॥ कबि कहि रुप नृप भुपतिनिके सिंगार । अति बडवार रापति सम बलके ॥ रेखराजनंद कोरपाल सोनपाल चंद | तन देत एसे हाथि निके हलके ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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