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जैन जाति महोदय.
जैनियाँ की वर्तमान दशा कैसी है इस बात को हूबहू दिखाने का प्रयत्न किया गया है। जिन जिन कारणों से जैन जाति की संख्या निरन्तर घट रही है, उल्लेख किया गया है तथा जैन जातियाँ की वर्तमान दशा जातीय और धार्मिक दृष्टि से कैसी है इस बात का सुक्ष्म दृष्टि से विचार किया गया है । तथा प्रथम खण्ड के योग्य मैटर बढ़ जाने से यहाँ प्रथम खण्ड समाप्त किया गया है । जो आज पाठकों के कर कमलों में उपस्थित है ।
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इस पुस्तक के कार्य को हाथ में लेने के बाद मुझे कई पुस्तकों से इस विषय का अध्ययन करना पड़ा तथा मेरे विचार निर्माण में उन पुस्तकों से बहुत कुछ सहायता मिली है। उन का उपकार और आभार मैं स्वीकार करता हूँ और उन के नाम भी धन्यवाद सहित यहाँ प्रगट करना चाहता हूँ ।
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( १ ) त्रिषष्ठ शलाका पुरुष चरित्र - मूल लेखक कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि ।
( २ ) फलोधी के उपकेश गच्छीय उपाश्रय के प्राचीन ज्ञान भण्डार के रक्षक वैद्य महत्ता ।
(३) बीकानेर, नागोर और खजवाने के उपाश्रयों के श्री पूज्यों की प्राचीन बहियाँ, प्राचीन पट्टावलियाँ, वंशावलियें, पट्टे, परवाने और सनद आदि ।
( ४ ) पट्टावली नंबर १ - २ और ३ यतिवर्य लाभसुन्दरजी द्वारा ।