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________________ प्रस्तावना. . ( २१ ) निर्णय किया गया है। उपकेश वंश की स्थापना को तो सब स्वीकार करते हैं पर इस के स्थापित होने के समय पर इतिहासज्ञों में बहुत मतभेद है अतएव इस प्रकरण में ओसवाल जातिका समय निर्णय किया गया है। इसी प्रकरण के परिशिष्ट नं. ५ में ओसवाल जाति का विस्तृत परिचय कराया गया है । श्रोसवालों का आचार विचार, रहन सहन, सभ्यता आदि किस प्रकार की है इत्यादि बातों को विस्तारपूर्वक बताने का प्रयत्न किया गया है ! परिशिष्ट नं. २ और ३ में इसी प्रकार पोरवाल और श्रीमाल जाति का संक्षिप्त में परिचय कराया गया है । इसी खण्ड के पञ्चम प्रकरण में पार्श्व प्रभु के ७ वे पट्ट के प्राचार्य से वर्णन शुरु किया गया है तथा पार्श्व प्रभु के १३ वें पट्ट तक के प्राचार्यों का वर्णन सविस्तृत रूप से बताया गया है। बाद में भगवान महावीर स्वामी के पट्ट पर के १२ आचार्यों का वर्णन है । इस प्रकरण में दो अध्याय बड़ी ग्बोज के साथ लिखे गये है। एक में जैन इतिहाग्न और दूसरे में कलिंगदेश का इतिहास जिस के कारण जैन जातियाँ के महोदय का भली भाँति सबूत मिलता है । इस प्रकरण के अंतिम अध्याय में जैन जातियाँ का महोदय प्रान्तवार बताया गया है । ___ इमी खण्ड के छट्टे प्रकरण में जैन जातियाँ का महोदय किन कारणों से रुक गया है उस का विवेचन किया गया है। प्रारम्भ में जैनियाँ पर आक्षेप किये जाते है उन का समाधान तथा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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