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________________ (७२) श्री जैन नाति महोदय प्र० चोथा. जागड़-शाहा का महात्व. . . सांगरांण परणीयो; मांड बंधीयो मंडोवर । मंडोवर रे धणी; सेर नहीं दीनो सधर ॥ मिली कोडि मंगता, कोई उर वोड न सके। . महाजनको मोड; साह निति बारों अंके ॥ मेवाड धणी मंडोवरा, येता थया अनंगमा। जगडवे साह जिमाडीया; सउ लाख एकणि समा ॥ बेता हरो बदे खुदियालम; उपाडीये बिलसीये आथि । कासिब हरे कीयो कर मुकतो संचे नंद न लेगो साथि ।। जहांगीर शाहकी महेमानी करनेवाला जगतशेठ झवेरी हीरानंद. मुकरबखानु पुछिया नृप नूरजहांनी । कब चलां घर नंदके लेने महमांनी ? | कछुक महतल किजिये; हे लोक नमेरा । कियो अखा घर देखिये हीरानंद केरा ॥ क्या मै नौसरखानदी क्या लोकाताइ ? । मै सोदागर साहिदी मुझइ हे बडाइ ॥ बंदा आपणा जांणि के कजिये बडेरा ! एक पियाला खुस करो खुसबुइ केरा. ॥ मैगल घणा उमाहिया जनू बदल काले । आपण सहिजो चलणे ते सद मतिवाले ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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