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प्रोसपास जाति के वीरोंके प्राचिन कवित्त (२) दिल मंडली मेवात करे संघ मांहि हितमंन । मंगिण हारां बोस; सरस अति घाले मंता.॥ तहां रंग न रहे चोख कहि; सरस चराचि दस खचि करि । संसार इसा नर अक्तर्या, किम पुजे सोहिल सरि ॥
दानवीर छजमल बाफणा. सुपरिसो सेणिकराइ जेम सुधम निय । नंद मंद जिम बरखत; जाचिकजनां लछि बहु दिनिय ॥ सपुत भांण दलपति मनोहर; कहि गिरधर सोभाजगि लिनिय। बंदे आसकरण आचारिज; करणी अजब स करमण किंनिय ॥ उतपति ओयस थांन; साख बापणां संकज नर । सांगानेर मझारि; कियो जिन प्रासाद उच कर । प्रोसवाल भुवाल साह भेरू धरि सुंदर । चोहथहरा सुचाइ, बंधव छजमल उनत कर ॥ प्रतिष्ठा करे श्री जिन तणी कहे धनो जी तब जीयो । त्यागियां तिलक ठाकुर तणे; करमचंद जगि जस लीयो । आगे नरसिघ हवा; अंन दूरभखमै दीया । रतनसीह रंगीक, प्रगट परसाद ज कीया ॥ कुलवट येह अचार दांन पहु समाज दिजे । बोसवंस उदिवंत किति कहुखंडि भणिजे ॥ सिवराज घरे सजन भगति; कहि किसनां कीरतिभल । गढमल तणो गुण को निलो; ते छजमल्न जगे भारमल ।।