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________________ (0) श्री जैन जाति महोदय प्र. चोथा. सबहीको सूरि अभिलाख कवि सुंदर जु । नोलखी के पाये केउ लाख जीव जीये है । सुराणाकी उदारता. सूराणा उगम लगै, अलवेसरि उदार। . परउपगारी कारणे; उदया इण संसार ।। उदया इण संसार महा दीसत उन्नत कर । खिदरखांन दीयोमान राज काजे धुरिंधर ।। . ज दिन चणा नवेसर; रावराणा सत छंड्यो । रेल्हण छाजूनंद; त दिन पुरिख न मनि मंड्यो । नरसिंघ मोल्हातसो सर्यो करतब सवायो। .. बोइथ के चोखराज आनंदै जगत जिवायो । पूनाहल जंपक कुल कवल; करमसीह सच्चो कह्यो । बासठे समे बेरोजगढ; सूराणे सत संग्रह्यो । __सोहिलशाहकों छंद. कवियण कलत्र कहे सुण कंता, परहरि पीय परदेसे चिंत । दुरि दिसावर मम करि तकहु; सुइण सदाफल सोहिल मंगोहु ॥१॥ तुछ काम. टा मुटा बोले; ते नर सोहिल सरि किम तुले ? त्यागि बार दोहे मुह मोडा, दूसम समै अंन देवें थोडा. ॥२॥ असमे थोडो अंन गर्ब मनमांहि आणे . पंतिभेद जे करे लाहि लाहणि नही जाणे.
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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