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________________ ( ६८ ) श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा. जिणि देस उभै खटमास अंधारौ सुर न दीसे पंथ सही । परवत्त अलंग महा बिहु पासै, बाट बियाले तेथि बही ॥ निसि द्यौस न दीसे राह चलंतौ, धुनां दीपक हाथि धरे । तिथि देस नरेसुरराम तुहारि कीरति कोडि किलोल करे. ॥ १० ॥ जा देस मदमत्त होई हसती, भाति प्रजाइब बंनि भरे । नव निधि सिरोमणि तास निमंधि रोस भयंकरि रंग मेरे ॥ हिब होइ जिये दिसि बाह हसी, झाला देइ न मदि झरे । तिण देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कोडिं किलोल करे ॥ ११॥ जिणि देसि बिह जण जोडी जांमे, एक बिहु घर वास हुवे । सुखसेज सदा वृत्र पुरं संपति, साथ अवासे मांहि सुवै । जगदीस इसी किम कीधी जोडी आपण माहि न होइ रे । जिणि देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कोडि किलोल कर ॥ १२॥ बंदि छोडानेवाला करमचंद चोपडा. गढरोहो मंडियो सुभट सावंत रुकाणा । पवन छतीसे बंदि हुवा इक अकथ कहाणा || सवाल भूपाल दाम दे बंदि बुडाइ । करण करतब करन, वदे सहु कोइ वडाई || समधर भणे ताल्हण सुतन, न्याइ बिहु पखि निरमला । चीतोड भिडं ते चोपडे, करमचंद चाढी कला ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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