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ओसवास झाति के गररत्नोंका परिचय. (३०) हगवंत जीये दिसि मारे हाका, हेकपुरिषां देह हरै।। तिणि देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कोडि किलोल करे. ॥४॥ जिणि देस उमै मण पितलि जोडे घाट अजाइव लोक घडै । अिणि देसि त्रिपंखी लोहणि ताला, जोनि जितनी कानि जडै ॥ जिणि देस पदमणि पीता पांणी पावस दीसै पुठि परै। तिणि देस नरेसुर गम तुहारी कीरति कोटि किलोल करे. ॥५॥ जिणि देस कलेस न आवे जीवा, इक बाहै इकइस लुणे । जिणि देस समुंद्री कांठल जाये, चंदाबढ़नी लाल चुणै ।। सोवंन जिणे दिसि सीधु साटै, मानव कोय न मुख मरे । निणि देम नरे मुर गम तुहारी कीरति कोटि किलोल करे. ॥६॥ जिणि देस दहुं जणह कण जीमण, भोजन प्रायां सीर मिले उण देस कहे जगनाथ उडीमा, मानव कोडि अनेक मिले ॥ समग्गणि ठाइ हणे मिल उपरि, साच पटंतर काज सरे । तिणि देस नरेसुर गम तुहारी कीरति कोडि किलोल करे. ॥७॥ निाण देस महेसन मेछ जुहारे जोति अगनि पाषाण जलै । बुद्धि एह अचंभ विहुणे बालणि बारह मास प्रखुट बलै ॥ परताप सकति न बुडे पांणी, चावल होम निगंन जरे । निणि देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कोडि किलोल करे. ॥८॥ जिणि देस इसा किम जंगम वासे, कान बधारि बि हाथ करे । मुख प्रांखि न दीसे मुछां प्रागै, मीच घणां दिन जाय मरे ॥ फल फुल प्रहार करे नबि फेरो, जोग अभ्यासन बिख जरे । तिणि देस नरेसुर गम तुहारि, कीरति कोडि किलोल करे. ॥९॥