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1) जैन जाति महोदय प्र. चोषा. जित लग संघ महातर जैसा, उन सेवंतां टले प्रदेसा। . सो पर चंदन परउपगारी, तितलगिकीरति राम तुहारी. ॥ १ ॥ साटिक-रामचंद्रो गमरुपस्य, गमरुपि मनोहरो।
रो रवेण भये गम, संकरे देसांनरि गत ॥ ५ ॥ दोहा-किति समंदा कंठलै, परभैः कीयौ प्रवेस । गंम सदाहा रूपके, नरवै जर्षे नरेस. ॥६॥
छंद. जिणि देस नरेस जपै गुण तोरी, जीव भखे पाषांण जरं। . संपुर समंद बहंते सायर, टाघण साम्है नीरति परे ॥ जिणि देस में निख सकै नहि जाइ, घोडी दूधम थांण घुरै । निणि देस नॉसुरराम तुहारी, कीरति कोडि किलोल करै ॥ १ ॥ जिणि देस अजाइब बात जपंता, बीछी मीढामांनि १ वसै; जिणि देस अजियर उट अरोगै२ भाहर सदा लोक बसै ॥ जिंणि देसि इसा गुण नारी जांण, भील गुंजाहल मांग३ भरे। निणि देस नरेसुग्राम तुहारी, कीरति कोटि किलोल करै. ॥२॥ जिणि देस सदा प्रति धेन सवारी, सत सवामण दूध अवै । जिणि देस पदमणि पीन पयोहर, खोले राखे काय खवै ।। जिणि देस पिता बीण आपण जोइ, बिरहनि पंच भ्रतार बरे । तिणि देस नरेसुर राम तुहारी, कीरति कोटि किलोल करे. ॥३॥ जिणि देसि सलोभी मानव जाये, खाड गजा ले मौलि खणे । इम जाणि करे नर इसर बांहण, भांमणि एसा मंत्र भणे ॥ १ मेंढा जीतना वींछु. २ उंट लेजावे एसे बडे अजगर.