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________________ ओसवाल ज्ञाति के नररत्नोंका परिचय. ( ६५ ) भुमियां भुपतिक राइ महा भड, ते दिसे दरबारि खडा । जे गंभण भट दिवांण दरसंण, जगातीहुजिदार बडा ॥ जे मंगाया गीत करै कबि, मांहि महाजन मेल मिली । दरबार तुहारै रामनरेसुर, सेवै राज छतीस कुली. ॥ ३ ॥ जे मीर मीया सीकदारत खोजा, खांन मुम्मिक तुरुक तुचा । खांजांदा मलिक जुमेर मुकदम, ज्वांन पठाण मुगल बचा ॥ जे जामलगाह बलोच हबसी, खेड खत्री जनु मेलमिली । दरबार तुहारै रामनरेसुर, सेवै राज छतीस कुली. ॥ ४ ॥ कवित - राजकुली दरबारि, एक बीनती पठावै । 'इक उभा वोलगै इक बड सेवा श्रावै ॥ छाजै वंसि छतीस एक जी जी करि जपै । मन भावै सो करै एक थाप्या उथपै || अलवर साहि श्रालम थपियो, कहे जस कीरति भल. दरबार गंम डाहा तणौ, मोंड बंधी मागै महल. ॥ १ ॥ विचित्र देशोनुं वर्णन. दिसि जिणि सूर उदै दरसायं, जिति लगन दीनि न्यायुं जायं । दुबिचल जित लग ध्रु तारी, तितलग कीरति राम तुहारी ॥ १ ॥ बडा पहाड जेथि भैबंका, लंकापरे तथि पडलंका | सौ मण दंत हस्ति मुख सारी, तितलग कीरति राम तुहारी ॥ २ ॥ जित लग पुरुष पंगु रन पांने, समझे नहीं तेथि परि साने | अर्क तेज उतरे अवारी, तितलग कीरति राम तुहारी ॥ ३ ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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