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(३०) जैन जाति महोदय प्र. चोषा. विशाल संख्यामे होने का कारण यह दुबा कि कितने में व्यापार करने से, कितनेक एक ग्राम से अन्यग्राम जाने से पूर्व प्राम के नाम से, कितनेकों के पूर्वजोंने देशसेवा, धर्मसेवा या वडे वडे कार्य करने से, और कितनेक हाँसी ठठा मस्करी से उपनाम पडते पडते वह झाति के रूपमें प्रसिद्ध हो गये एक याचकने भोसवालोंकी जातियों कि गणती करनी प्रारंभ करी जिस्मे उसे १४४४ गोत्रों के नाम मिला बाद उसकि ओरतने पुच्छा कि हमारे यजमान का गोत्र श्राप की गणती में आया है या नहीं ? याचकने पुछाकि उन्हों का क्या गोत्र है ?
ओरतने कहा 'डोसी' याचकने देखातो यह नाम गीणती मे नहीं आया तब उसने कहा कि " डोसी तो मोर बहुत से होसी" पोसवाल ज्ञाति एक रत्नागर है इसकी गणती होना मुश्किल है इस समय कितनिक जातियों बिलकूल नाबुद हो गई पर उन दानवीरों के बनाये मन्दिर व मूर्तियों जिनके शिलालेखों से पता मिलता है कि पूर्वोक्त झातियों भी एक समय अच्छी उन्नतिपरथी इतना ही नहीं पर प्राचीन कवियों ने उन ज्ञाति के दानवीर धर्मवीर शूरवीर नररत्नों कि कविता बना के उनकी उज्वल कीर्ति को प्रभर बनादी है कतिपय प्राचीन कवित यहांपर दर्ज कर देते है--
भैसाशाहा आदित्यनाग (चोरडीया) गोत्र छपन कोटि गुजरात वात जग सयल प्रसिद्धि । सचायिका प्रसिद्ध, रहै सिरपै सिधि दिधी ॥ नौखंड हुवोज नांव, राव राणा सहु जाणे । . ग्यारा सैने पाठ ( ११०८ ) हल्लकवि कित्ति वांग ॥